-दीपक रंजन दास
राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में राजनीति की चाल को बदल दिया है। भाजपा की नई सरकार उन सभी लूप-होल्स को पैक कर रही है जो इससे पहले उसने कभी नहीं किया। चुनाव से पहले किसानों और महिलाओं को साधने के साथ-साथ उसने आदिवासी और ओबीसी के फार्मूले पर भी काफी काम किया था। चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने न केवल आदिवासी मुख्यमंत्री दिया बल्कि दो-दो उपमुख्यमंत्री देकर सरकार को डबल इंजन के बजाय पांच इंजन दे दिये। जशपुर जिले के कुनकुरी क्षेत्र से विधायक चुने गए साय चार बार सांसद, दो बार विधायक, केंद्रीय राज्य मंत्री और तीन बार प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। उन्हें संगठन में काम करने का भी अच्छा खासा अनुभव है। सरकार को संतुलन देने के लिए अरुण साव और विजय शर्मा को उप-मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। बिलासपुर से सांसद रहे अरुण साव लोरमी से चुनकर आए हैं। वे सरकार के लिए पैनल एडवोकेट रहे हैं तथा 2018 तक छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करते रहे हैं। इस चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्होंने पार्टी का नेतृत्व किया। कवर्धा में अकबर को प्रचण्ड मतों से हराकर विधानसभा पहुंचे विजय शर्मा को भी उप-मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। तीन बार मुख्यमंत्री रहे डॉ रमन सिंह को विधानसभा का स्पीकर नियुक्त किया जा रहा है। इस तरह से नई सरकार में आदिवासी मुख्यमंत्री, ओबीसी और ब्राह्मण डिप्टी सीएम तथा ठाकुर विधानसभा अध्यक्ष होंगे। आदिवासी राष्ट्रपति देने के बाद आदिवासी मुख्यमंत्री देकर भाजपा ने सबका मुंह बंद कर दिया है। आदिवासी मुख्यमंत्री देने के साथ ही पार्टी ने प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष पद ओबीसी को देने का फैसला कर लिया है। विजय बघेल को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। 2018 में सरकार बनाने के तत्काल बाद भूपेश बघेल ने किसानों का कर्ज माफ कर दिया था। नई सरकार ने 13 दिसम्बर को शपथ ग्रहण करने के बाद 25 दिसम्बर को किसानों के बकाया बोनस का भुगतान करने की घोषणा कर दी है। साथ ही 18 लाख पीएम आवास पर काम शुरू करने का भी ऐलान किया है। जैसा की चुनाव के दौरान ही स्पष्ट कर दिया गया था कि यहां सरकार मोदी की गारंटी पर बनेगी, उसे पूरा करने की भरसक कोशिश की जा रही है। छत्तीसगढ़ में जीत की पटकथा लिखने वाले भाजपा के चाणक्य अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित रहेंगे। भाजपा ने डबल इंजन सरकार की गारंटी करने के साथ-साथ इसे भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि सरकार खुशी में कहीं सो न जाए। दरअसल, छत्तीसगढ़ कांग्रेस मुक्त भारत के फलसफे की राह का सबसे बड़ा रोड़ा था। छत्तीसगढ़ में शासन-प्रशासन चाहे जैसे-तैसे चल रहा था पर देश भर में यहां के कामकाज का डंका बज रहा था। इसलिए जातिगत जनगणना पर ढुलमुल चल रही भाजपा को भी अंतत: जातीय समीकरण को नियुक्तियों के केन्द्र में रखना पड़ा।
