Gustakhi Maaf: कहीं इन विधायकों को कोई फुसला न ले

Gustakhi Maaf: कहीं इन विधायकों को कोई फुसला न ले

-दीपक रंजन दास
इस बार एक्जिट पोल ने दोनों ही पार्टियों को उलझा दिया है। एक्जिट पोल के अलावे पार्टियों के पास खुद अपने कार्यकर्ताओं से हासिल किए गए आंकड़े भी हैं। इतनी ज्यादा सीटें उलझी हुई हैं कि दोनों ही प्रमुख दलों की पेशानी पर बल हैं। एक तिहाई से ज्यादा सीटों पर कांटे का मुकाबला है। लगभग आधा दर्जन सीटों पर किसी तीसरे के जीतने की प्रबल संभावना है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पार्टियां अपने-अपने विधायकों को संभाले। यदि शक्ति परीक्षण की नौबत आई तो क्रॉस वोटिंग हो सकती है। अपने यहां कालेज और विश्वविद्यालयों को राजनीति की नर्सरी कहा जाता है। जब महाविद्यालयीन और विश्वविद्यालयीन छात्रसंघों के चुनाव होते थे तो वहां भी कक्षा प्रतिनिधियों से लेकर छात्रसंघ के पदाधिकारियों तक का अपहरण हो जाता था। इन्हें किसी होटल या फार्महाउस में संभाला जाता था। विवि छात्रसंघ के लिए होने वाले मतदान के समय इन्हें गाडिय़ों में भरकर ले जाया जाता था। बाद में मेरिट के आधार पर छात्रसंघ में मनोनयन का सिलसिला शुरू हुआ और यह नर्सरी खतरे में पड़ गई। अब पूरा दारोमदार युवक कांग्रेस और विद्यार्थी परिषद पर है। दरअसल, चुनाव के दौरान विधायकों का दर्जा नाबालिग जैसा हो जाता है। जाने कब कौन फुसला ले और पार्टी के किये कराये पर पानी फिर जाए। वैसे मौजूदा राजनीतिक परिवेष में बहलाने-फुसलाने से लेकर धमकाने वालों तक की कोई कमी नहीं है। ईडी-आईटी ने पहले ही कईयों की सांसों पर काबू किया हुआ है। क्या पता कौन सा विधायक बागी हो जाए। इसलिए दोनों ही दलों के प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष मतगणना के तत्काल बाद अपने विधायकों को काबू में करने का जुगाड़ लगा रहे हैं। राजनीति में इसे बाड़ाबंदी भी कहते हैं। इसमें से कांग्रेस की बाड़ाबंदी दिलचस्प है। पार्टी ने दो चार्टर्ड प्लेनों की व्यवस्था कर रखी है। वैसे विधायकों को बाड़े में लाने का काम पहले ही शुरू हो चुका था। भारत-ऑस्ट्रेलिया टी-20 क्रिकेट मैच के बहाने सभी विधायक प्रत्याशियों को एकत्र कर लिया गया है। विजयी घोषित होते ही इन्हें बेंगलुरू रवाना कर दिया जाएगा। वहां डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने अपने दरवाजे खोल रखे हैं कि यदि आलाकमान का निर्देश हुआ तो वे पांचों राज्यों के कांग्रेसी विधायकों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं। वैसे नाबालिगों को संभालना एक बड़ी जिम्मेदारी है। किसकी किससे लगी पड़ी है पता ही नहीं चलता। मुंहबोले रिश्ते कभी भी बदल जाते हैं। कॉल रिकार्डिंग, चैट एक्सपोर्ट, वीडियो कॉल रिकार्डिंग सभी कुछ तो है फांसने वाले के पास। इन्हें वायरल करने की धमकी देकर वह पीडि़त से कुछ भी करवा सकता है। न केवल वह उसे घर से भागने के लिए मजबूर कर सकता है बल्कि उसपर जेवर नगदी लाने का दबाव भी बना सकता है। ऊपर से विधायकों के मामले में तो पाक्सो जैसा कोई कानून भी नहीं है कि पुलिस उसे बचा लेगी। लिहाजा सारी जिम्मेदारी पेरेन्ट्स पर है।


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