-दीपक रंजन दास
एक तो वैसे ही कोई सरकारी डॉक्टर बनना नहीं चाहता और उसपर तमाम फच्चर. सरकारी डॉक्टर यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता. सरकार को लगता है कि डॉक्टर उसे चकमा देकर खुद कमाने में लगे हैं. कुछ मामलों में हो सकता है कि ऐसा हो पर अधिकांश मामलों में दोष किसी और का है. सरकार ने कभी सोचा ही नहीं कि आखिर लोग अस्पताल आने की बजाय डाक्टरों के निजी क्लिनिक में क्यों जाते हैं. आखिर लोग अस्पताल तभी क्यों पहुंचते हैं जब रोग बेकाबू हो जाता है. ऐसा सिर्फ सरकारी अस्पतालों के साथ नहीं है, अधिकांश निजी अस्पताल भी इसी उधेड़बुन से गुजर रहे हैं. भीड़ देर शाम क्लिनिकों में लगती है जहां दिन भर का थका-मांदा डाक्टर रात के 10-10 बजे तक मरीजों को देखता है. दरअसल, स्कूल-कालेज, दफ्तर, बैंक, अस्पताल सबके खुलने का समय एक ही है. सभी 10 से 5 काम कर रहे हैं. अस्पताल या बैंक जाने का मतलब है आधे या पूरी दिन कि छुट्टी. ऐसा करने के लिए बड़ी वजह चाहिए होती है. लिहाजा, सर्दी बुखार, पेट दर्द, सिर दर्द, कमर दर्द, घुटनों का दर्द जैसी बीमारियों का लोग खुद ही इलाज कर लेते हैं. लोग दिन भर का काम-काज निपटाने के बाद शाम को डॉक्टर दिखाने के लिए निकलते हैं ताकि ड्यूटी भी हो जाए और इलाज भी. फिर चाहे डाक्टर सरकारी अस्पताल का हो, निजी अस्ताल का हो या केवल प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला, उसके यहां लंबी कतारें लग ही जाती हैं. ऐसा मरीज की सुविधा के लिहाज से होता है. मरीज दिन में ड्यूटी के समय डाक्टर के पास जा नहीं सकता, शाम को सरकार डॉक्टर को प्रैक्टिस नहीं करने देगी तो क्या होगा? होगा यही कि जब रोग बेकाबू होगा तभी मरीज अस्पताल पहुंचेगा. तब रोग पर काबू पाना टेढ़ी खीर होगा और इलाज महंगा होता चला जाएगा. जीवन की गुणवत्ता कम होने के अलावा जान भी जा सकती है. रोगी और चिकित्सक के बीच की इस खाई को पाटना होगा. वैसे भी देश में अधिकांश बीमारियां तभी पकड़ में आती हैं जब वो सेकंड या थर्ड स्टेज में होती हैं. इस समस्या को हल सरकारी अस्पतालों की ओपीडी टाइम में बदलाव कर किया जा सकता है. पर फिलहाल सरकार को ऐसा करना सूझा नहीं है. वह डाक्टरों पर डंडा चला रही है. नियमानुसार सरकारी चिकित्सक केवल तीन घंटे निजी प्रैक्टिस कर सकता है. वह भी केवल अपने निजी क्लिनिक पर. अवकाश के दिनों में भी वह केवल पांच घंटे प्रैक्टिस कर सकता है. वह किसी दूसरे हॉस्पिटल में सेवा नहीं दे सकते. यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो उसका लाइसेंस निरस्त हो सकता है. शर्त यह भी है कि उसे इस बात का लेखा-जोखा रखना है कि क्लिनिक में कितने मरीज आए थे. उसने किन-किन बीमारियों का इलाज किया, कितनी फीस ली. डॉक्टर को इन नियमों के आधार पर शपथ-पत्र देना होगा.
