-दीपक रंजन दास
एक बार फिर धमकी मिली है- ‘सिंगल यूज प्लास्टिक से गंदगी फैलाई तो खैर नहीं।Ó अब तक तो खैरियत ही है भाई। एक तरफ धमकियां दोहराई जाती हैं और दूसरी तरफ सिंगल-यूज प्लास्टिक की खपत बढ़ती जाती है। जब घर में खाना बनता था तो केवल बर्तन धोने से काम चल जाता था। अब खाना ढाबे से आता है। होम डिलीवरी में खाना कम आता है और पैकिंग मटेरियल ज्यादा। रईस टाइप के लोग थोड़ा खाते हैं, थोड़ा फेंकते हैं। स्वादिष्ट मसालों से युक्त पैकिंग मटीरियल को मवेशी पूरा निगल जाते हैं। कुछ लोग सिर्फ बोतल बंद पानी पीते हैं। खाली बोतल को क्रश करके फेंकते हैं ताकि कोई दूसरा उसमें पानी भर कर न बेच सके। वैसे कुछ स्टेशनों पर साबुत खाली बोतलों में नल का पानी भरकर बच्चे 5-10 रुपए में बेचते हुए मिल जाते हैं। गरीब इसी से अपनी प्यास बुझा लेते हैं। उन्हें सेहत के फंडों से कोई लेना देना नहीं है। वे सिंगल यूज को मल्टिपल यूज बनाकर पर्यावरण की मदद ही करते हैं। हाल ही में राष्ट्रीय सेवा योजना के एक शिविर में जाने का मौका मिला। शिविरार्थियों ने बताया कि उन्होंने गांव में ऐसे आठ स्पॉट ढूंढे हैं जहां से प्रतिदिन समान मात्रा में कचरा मिलता है। इसमें पानी का पाउच, डिस्पोजेबल गिलास और पांच रुपए वाला चखना पाउच शामिल होता है। थोड़ा योगदान रंग बिरंगे गुटखा पाउच का भी होता है। इसमें ‘बोलो जुबान केसरीÓ वाले पाउच भी होते हैं। पता नहीं इनमें कौन से केसर डला होता है कि इसे फांकने के बाद भी मुंह से श्लोक देसी ही निकलते हैं। सिंगल यूज पैकिंग मटेरियल की होड़ बाजारवाद के साथ बढ़ती ही जा रही है। गिफ्ट खरीदो या रेडीमेड कपड़ा, ढेर सारा पैकिंग मटीरियल साथ में आता है। इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक भी होता है जिसे कबाड़ी वाला भी लेकर नहीं जाता। रीयूजेबल प्लास्टिक की बोतलों में तरह-तरह के पेय भी आते हैं। लोग इन्हें किसी डस्टबिन में डालें तो शायद यह रीसाइकल भी हो जाए पर अपनी तो आदत है जहां खाली हुई वहीं फेंक दिया। पहले लोग ट्रेन की खिड़की से बोतलें, बचा हुआ खाना, आदि फेंका करते थे। ये जंगल, झाड़ी, मैदानों में जाकर गिरता था। अब कार वालों में भी यही बीमारी देखी जाती है। कार की खिड़की सर्र से सरकती है और उसमें से पाउच, बोतल बाहर आकर सड़क पर लोटने लगती है। समझ में यह नहीं आता कि पर्यावरण की इतनी ही चिंता है तो इन्हें सोर्स पर क्यों नहीं रोका जाता। जवाब साफ है, इसका भारी भरकम उद्योग। वैश्विक पैकेजिंग-प्रिंटिंग बाजार का आकार 2020 में 352.01 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2025 तक 433.40 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। इतने बड़े उद्योग को कोई सरकार कैसे छेड़े। लिहाजा कोरी गीदड़ भभकियों से काम चलाना उसकी मजबूरी है। इधर दारू दुकान बंद नहीं होती और उधर पुलिस गाड़ी रोककर लोगों का मुंह सूंघती फिरती है।
